लोग सुरूचि को पसंद करते हैं, सुनीति को नहीं

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रायपुर। राम के भक्ति की मणि जिस भक्त के हृदय में प्रवेश हो गया उसके जीवन में कभी दुख व क्लेश नहीं होगा। जब तक गुरु के चरणों की कृपा हो जाए जीवन में सही तालमेल नहीं बिठा पाते है। लोग सुरुचि को पसंद करते है, सुनीति को नहीं। जीवन में संयुक्त गुण का होना जरुरी है। महामाया मंदिर प्रांगण पुरानीबस्ती में चल रही श्रीराम कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए संत मैथिलिशरण भाई जी ने बताया कि सृजन नहीं कर सकते यदि संयुक्त गुण नहीं होगा। जीवन में संयुक्त गुण का होना जरुरी है। गुण और दोष अलग नहीं है, लोग बीच की दूरी बनाए हुए है, वही अज्ञान और दुख का कारण है। ईश्वर ने हमारे-आपके सुख के लिए भेद बनाए है लेकिन हमने उसे दुख का कारण बना दिया है, अगर भेद समाप्त हो गया तो जीवन के सारे दोष खत्म हो जाएंगे। भाईजी ने आगे कहा कि जब सब तत्व जैसे सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, जल सबके लिए है तो पैसा दो-चार लोगों के लिए क्यों? आखिर यह विषमता क्यों और कहां से आई। विकल्प खोजेंगे तो प्रगति रुप जाएगी इसलिए समय का उपयोग कर लीजिए नहीं तो संकल्प कभी सिद्ध नहीं होगा। साधु वह नहीं जो चोला धारण करता है, साधु वह है जो सरल स्वभाव का और सबका हित चाहता है। जो है और उसे छुपाते है तो यह कपट है और जो नहीं उसे दिखा दे वह धर्म है। यदि धर्म और कपट मिल जाए तो यह माया बन जाती है।
संत और संसारी में अंतर
संसारी जीवन केवल अपनो को देकर जाता है जबकि संत सबको देकर जाता है। संत पूर्णता देखकर भाव ले लेते है और प्रसाद लौटा देते है, वहीं संसारी गुण और लाभ देखकर प्रेम करते है। सपना मिथ्या ही नहीं पूरी तरह कल्पित कल्पना है। सपना आपके जीवन से अलग नहीं है। दिन भर जो देख रहे है वह वर्तमान और भविष्य जो रात में देख रहे वह भूतकाल है।
दोषी मानकर छोड़ देना ठीक नहीं
बुरा व्यक्ति जिसे सभी ने दोषी मानते हुए छोड़ दिया है उसे सीने से लगा लो आपका जीवन धन्य हो जाएगा और आपका साथ पाकर वह भी सुधर जाएगा। अगर व्यक्ति अहंकारी है तो उसके अहंकार को आप अपने उपयोग ले लो। यदि श्रोता के चरण छूने से दोष दूर हो जाते है तो कथा वाचक की कथा सार्थक हो जाएगी।