रायपुर। गुरु के पास कृपा के अलावा और कुछ नहीं रहता, वे यदि नाराज होकर शिष्य से कुछ कहें तो शिष्य को उसे गुरु प्रसाद के रुप में स्वीकार कर लेना चाहिए। क्योंकि उनकी नाराजगी में भी कृपा छुपी रहती है। गुरु महिमा के प्रसंग पर संतश्री शंभुशरण लाटा महाराज ने श्रोताओं को बताई। कांदुल दुर्गा मंदिर परिसर में चल रही रामकथा के छठवें दिन लाटा महाराज जी ने बताया कि भगवान को बताने के लिए गुरु की आवश्यकता नहीं है गुरु की आवश्यकता अहंकार को समर्पण के लिए पड़ती है। अभिमान का विसर्जन कहां करना है यह गुरु बताते है। उन्होंने कहा कि कलयुग के गुरु अंधे और शिष्य बहरे होंगे। गुरु केवल अर्थ कमाएंगे और शिष्यों का धन कैसा लूटा जाए इसी जतन में लगे रहते है ऐसे में ये गुरु अपने शिष्यों को मानसिक शांति कहां दे सकते है। भगवान की पूजा, भजन तो सभी करते है लेकिन इस संसार के भव सागर से तारने का सामर्थ्य केवल गुरु ही कर सकते है। गुरु के पास कृपा के अलावा कुछ नहीं होता, यदि गुरु पर विश्वास रखें तो उस शिष्य को धर्म, अर्थ, सुख, मोक्ष सब कुछ प्राप्त हो जाता है। लाटा महाराज ने कहा कि आज मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी यह कि वह संतुष्ट नहीं है। उसके पास जीतना है उससे अधिक सुख चाहता है। जीव को उस परमात्मा का कृतज्ञ होना चाहिए जिसने उसे दिया क्यों कि भगवान मनुष्य को उसकी औकात से अधिक उसे देता है। कैकेयी प्रसंग पर महाराज श्री ने कहा कि व्यक्ति को कुसंग, बुरे लोगों से दूर रहना चाहिए क्योंकि बुरे लोगों का और कुसंग का असर व्यक्ति पर जल्दी होता है। आज के इस युग में व्यवस्था पर कटाक्ष करते हुए लाटा महाराज जी ने कहा कि मंत्रियों को कैसे कहना चाहिए यह रामकथा में सुमन जी से सीखे। पहले वे रामकथा सुन लें तो फिर उन्हें अपना बयान नहीं बदलना पड़ेगा।