दुर्ग में राजेश श्रीवास्तव जिला एवं सत्र न्यायाधीश/ अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण दुर्ग के मार्गदर्शन एवं निर्देशन पर श्रम विभाग, महिला एवं बाल विकास एवं पुलिस प्रशासन के संयुक्त संयोजन से दुर्ग जिले के विभिन्न स्थानों पर बाल श्रमिक को रोकने हेतु जागरूकता कार्यक्रम चलाया गया। राहुल शर्मा न्यायिक मजिस्ट्रेट /सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण दुर्ग ने बताया कि हर साल 12 जून को पूरी दुनिया में विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से श्रम न कराकर उन्हें शिक्षा दिलाने के लिए जागरूक करना है । भारत का संविधान मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत की विभिन्न अनुच्छेदों के माध्यम से कहता है कि 14 साल के कम उम्र का कोई भी बच्चा किसी फैक्ट्री या खदान में काम करने के लिए नियुक्त नहीं किया जाएगा और ना ही किसी अन्य खतरनाक नियोजन में नियुक्त किया जाएगा । बच्चों को स्वस्थ तरीके से स्वतंत्र व सम्मानजनक स्थिति में विकास के अवसर तथा सुविधाएं दी जाएगी और बचपन वा जवानी को नैतिक व भौतिक दुरुपयोग से बचाया जाएगा। बाल श्रम (निषेध व नियमन) कानून 1986 यह कानून 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को 13 पेशा और 57 प्रक्रियाओं में, जिन्हें बच्चों के जीवन और स्वास्थ्य के लिए अहितकर माना गया है, नियोजन को निषिद्घ बनाता है। फैक्ट्री कानून 1948 यहां कानून 14 से 18 वर्ष तक के किशोर किसी फैक्ट्री में तभी नियुक्त किए जा सकते हैं जब उनके पास किसी अधिकृत चिकित्सक का फिटनेस प्रमाण पत्र हो। इस कानून में 14 से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिए हर दिन साढ़े चार घंटे की कार्यावधि तय की गई है और रात में उनके काम करने पर प्रतिबंध लगाया गया है । कोई भी व्यक्ति जो 14 साल से कम उम्र के बच्चे से काम करवाता है अथवा 14 से 18 वर्ष के बच्चे को किसी खतरनाक व्यवसाय में काम देता है उसे 6 महीने से 2 साल तक की जेल की सजा हो सकती है और साथ ही 20 हजार से 50 हजार रुपए तक का जुर्माना भी हो सकता है। बच्चों के माता-पिता/ अभिभावकों को अपने बच्चों को इस कानून के विरुद्ध काम करने की अनुमति देने के लिए सजा नहीं दी जा सकती है परंतु यदि किसी 14 वर्ष से कम आयु के बच्चे को व्यवसाय के उद्देश्य से काम करवाया जाता है या फिर किसी 14 से 18 वर्ष की आयु के बच्चे को किसी खतरनाक व्यवसाय या प्रक्रिया में काम करवाया जाता है तो यह प्रतिरक्षा लागू नहीं होती और उन्हें सजा दी जा सकती है। इन कानून के अलावा और भी ऐसे अधिनियम है (जैसे फैक्ट्रीज अधिनियम, शिपिंग अधिनियम, मोटर परिवहन, श्रमिक अधिनियम इत्यादि) जिनके तहत बच्चों को काम पर रखने के लिए सजा का प्रावधान है पर बाल मजदूरी करवाने के अपराध के लिए अभियोजन बाल मजदूर कानून के तहत ही होगा। व्यापारी एवं ठेकेदार से लोगों से आशा का बंधपत्र भी भरवाया गया । भविष्य में उनके द्वारा कभी भी 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के काम नहीं करवाया जाएगा और अगर किसी को 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से काम करवाते देखेंगे तो उनके द्वारा रोका जाएगा एवं उसकी शिकायत की जाएगी । बाल मजदूरी रोकने का सबसे महत्वपूर्ण उपाय है बाल मजदूरी के खिलाफ जागरूकता फैलाना ताकि लोग समझ सके कि बाल मजदूरी देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। उन्हें बताना होगा कि बाल मजदूरी के द्वारा भारत के भविष्य जो बच्चों में है वह मानसिक व शारीरिक रूप से कमजोर हो रहा है । बाल मजदूरी रोकने का दूसरा उपाय है शिक्षा का प्रचार-प्रसार क्योंकि अशिक्षित व्यक्ति बाल मजदूरी को नहीं समझता है। शिक्षा का प्रसार होगा तो बाल मजदूरी पर रोक लगेगी तथा लोग बाल श्रम के प्रति जागरूक होंगे । इस आयोजन में लोकेश पटले न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के पी ल वी, श्रम विभाग के अधिकारी एवं पुलिस अधिकारी उपस्थित थे।