रायपुर। पिछले दो माह से छत्तीसगढ़ सरकार के महाधिवक्ता कनक तिवारी की कार्यशैली को लेकर विवाद उठता रहा है। अंतत: शुक्रवार को यह मामला तब और सुर्खियों में आ गया जब सरकार ने कनक तिवारी को हटाते हुए उनके स्थान पर नये महाधिवक्ता के रुप में सतीश चंद्र वर्मा की नियुक्ति कर दी। पूरे घटनाक्रम की सच्चाई काफी दिलचस्प है। सूत्रों से मिली जानकारी पर यकीन करें तो महाधिवक्ता रहे कनक तिवारी ने अपने क्रियाकलापों से सरकार के लिए गंभीर संवैधानिक संकट उत्पन्न कर दिया था। तृप्ति राव नाम के अधिवक्ता ने कनक तिवारी के ऊपर संवैधानिक पद की मर्यादा के विरुद्ध शासकीय अधिवक्ता नियुक्ति को लेकर बिलासपुर हाईकोर्ट में याचिका प्रस्तुत की थी जिसमें कनक तिवारी व्यक्तिगत रूप से पार्टी बनाए गए थे। इस मामले में हाई कोर्ट में गंभीर रूप अख्तियार किया था। मामले की गंभीरता को देखते हुए उच्च न्यायालय ने कनक तिवारी के द्वारा पारित किए गए आदेश की प्रति भी तलब कर लिया था। इस मामले में कनक तिवारी ने बिना राज्य शासन को अवगत कराये अतिरिक्त महाधिवक्ता सुश्री फोजिया मिर्जा को मामले में पैरवी के लिए उपस्थित करवाया था। जब इस मामले की गंभीरता का पता राज्य शासन को चला तब सारे मामले की पड़ताल की गई और यह तथ्य सामने आया कि कनक तिवारी ने विधि विरुद्ध तरीके से आदेश पारित किए हैं जिससे सरकार के लिए गंभीर संवैधानिक संकट उत्पन्न हुए हैं। उपरोक्त परिस्थितियों से छत्तीसगढ़ सरकार को संवैधानिक संकट का सामना करना पड़ रहा था। सरकार के लिए यह दुविधापूर्ण था कि वह किस रूप में इस मामले को समाप्त करे। पूरे प्रकरण के पीछे मूल तथ्य यह है कि क्या कनक तिवारी ने संवैधानिक मर्यादाओं का अपमान करते हुए राज्य सरकार को बिना विश्वास में लिए तथा विधि विभाग को बिना सूचित किए जो अपने खिलाफ लगे मामले में विधि विरुद्ध से पैरवी करने के लिए अतिरिक्त शासकीय अधिवक्ता सुश्री फोजिया मिर्जा को आदेशित किया था। ऐसे में सरकार के पास उन्हें हटाने के सिवाय कोई अन्य विकल्प नहीं रह गया था।