650 साल पहले हुआ था कंकाली मंदिर का निर्माण, 70 साल में सिर्फ चार बार हुए शिवदर्शन

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रायपुर। किसी समय श्मशान और वीरान जंगल में बना कंकाली तालाब वर्तमान दौर में राजधानी की घनी बस्ती के बीच स्थित है। बताया जाता है कि नागा साधुओं ने मां कंकाली के स्वप्न में दिए आदेश पर 650 साल पहले कंकाली मंदिर का निर्माण करवाया था। मंदिर के ठीक सामने भव्य सरोवर बनाकर बीच में छोटा सा मंदिर बनवाकर शिवलिंग की स्थापना की। शुरूआती दौर में नागा साधु और शिवभक्त पूजन-दर्शन करने आते थे। इसके बाद कुछ ऐसा चमत्कार हुआ कि धरती से पानी की धारा फूट पड़ी और सरोवर लबालब भर गया। 20 फुट ऊंचा मंदिर पूरी तरह से पानी में डूब गया। किवंदती है कि कई बार तालाब को खाली करके आम भक्तों के लिए मंदिर खोला गया, लेकिन कुछ दिनों में पुन: मंदिर तालाब में डूब गया। आखिरकार प्रभु इच्छा के चलते मंदिर को उसी हाल में छोड़ दिया गया। सदियों से आज भी मंदिर तालाब के बीच डूबा है, जिसके चलते भक्तगण शिवलिंग के दर्शन नहीं कर पाते। मां कंकाली मंदिर में कई पीढ़ी से पूजा कर रहे पुजारी परिवार के वंशज पं.आशीष शर्मा बताते हैं कि 700 साल पहले आजाद चौक, ब्राह्मणपारा के समीप नागा साधुओं ने डेरा डालकर मठ की स्थापना की थी। वे मां कंकाली के परम भक्त थे। महंत कृपाल गिरी महाराज को मां कंकाली ने स्वप्न में दर्शन देकर कुछ ही दूर मंदिर निर्माण करने की आज्ञा दी। लगभग 650 साल पहले मंदिर का निर्माण पूरा हुआ और मठ से स्थानांतरित करके मां कंकाली की प्रतिमा मंदिर में प्रतिष्ठापित की गई। इसके बाद नागा साधुओं ने सरोवर बनाने खुदाई की और बीच में मंदिर बनवाकर शिवलिंग की स्थापना की। नागा साधु पहले मां कंकाली और फिर शिवलिंग की विशेष पूजा-अर्चना करते थे। पं. बताते हैं कि उन्होंने बुजुर्गों से सुना है कि एक दिन ऐसा चमत्कार हुआ कि देखते ही देखते सरोवर भर गया और मंदिर पूरी तरह से डूब गया। सदियों बाद भी मंदिर पानी में ही डूबा है। आज भी मां कंकाली की आरती के बाद पानी में डूबे शिवलिंग की आरती ऊपर ही ऊपर की जाती है। देश आजाद होने के बाद सबसे पहले 1965 में तालाब की सफाई करवाई गई, तब मोहल्ले के लोगों ने पत्थर के शिवलिंग का पहली बार दर्शन किए। तालाब फिर भर गया। इसके बाद 1975, 1999 और फिर 2013 में पुन: तालाब की सफाई की गई। इस तरह अब तक मात्र चार बार आसपास के हजारों लोगों ने शिवलिंग के दर्शन किए थे। वर्तमान में तालाब लबालब भरा है और मंदिर का गुंबद ही दिखाई दे रहा है। भीषण गर्मी में जब राजधानी के सभी तालाब सूखने लगते हैं, तब भी एकमात्र कंकाली तालाब लबालब भरा रहता है। जब तालाब के बीच बना 20 फुट ऊंचा मंदिर पूरी तरह से डूबा रहता है तो इससे तालाब की गहराई का अंदाजा लगाया जा सकता है कि कम से कम गहराई 30 फुट होगी। बताते हैं कि कंकाली तालाब के भीतर सुरंग बनी हुई है। इस सुरंग के रास्ते से तालाब से दो-तीन किलोमीटर दूर महाराजबंध तालाब, नरैया तालाब और बूढ़ा तालाब तक पानी पहुंचता है। कुछ ही दूर प्रसिद्ध महामाया मंदिर की बावली भी कंकाली तालाब से ही जुड़ी हुई है। ऐसी मान्यता है कि किसी के शरीर में खुजली हो या चर्म रोग के कारण कोई परेशान हो तो तालाब में डुबकी लगाने से चर्म रोग में राहत मिलती है। चैत्र नवरात्रि पर राजधानी के सभी मोहल्लों से जंवारा विसर्जन करने के लिए भक्तगण कंकाली तालाब पहुंचते हैं। मान्यता है कि जंवारा विसर्जन करने के कारण ही तालाब के पानी में औषधीय गुण है, प्रतिदिन यहां सैकड़ों लोग चर्म रोग से छुटकारा पाने स्नान करते हैं।