कई बार शराब और सिगरेट का इस्तेमाल नहीं करने वाले भी लिवर की बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। मगर इस खतरे को खुद से दूर रखने में आयुर्वेद आपकी मदद कर सकता है। इसके लिए आपको अपने खानपान की आदतों में सुधार करना होगा। नॉन एल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज लिवर की उस अवस्था को कहते हैं, जिसमें शराब का सेवन नहीं करने वाले लोगों का लिवर फैटी हो जाता है। इसमें लिवर सेल्स में सीमित मात्रा से ज्यादा वसा इकट्ठा हो जाती है। नॉन एल्कोहॉलिक स्टेटोहेपेटाइटिस लिवर की गंभीर बीमारी है, जिसमें लिवर में सूजन आ जाती है। इसकी वजह से लिवर पूरी तरह से खराब हो सकता है। इसमें भी लिवर को नुकसान उसी स्तर का होता है जितना बहुत अधिक मात्रा में शराब पीने वाले के लिवर को होता है। एक समय के बाद लिवर सिरोसिस या लिवर फेल होने का खतरा बढ़ जाता है। नॉन एल्कोहॉलिक फैटी लिवर की बीमारी हर उम्र के लोगों में देखने को मिलती है। मगर 40 से 50 साल की उम्र के लोग इसके अधिक शिकार होते हैं। इसकी बीमारी के आमतौर से कोई खास लक्षण या संकेत नहीं दिखते हैं। हालांकि जब दिखते हैं, तो यह बढ़ा हुआ लिवर, थकान और पेट के दाहिने तरफ ऊपर की ओर दर्द के रूप में सामने आता है। नॉन एल्कोहॉलिक स्टेटोहेपेटाइटिस और सिरोसिस में पेट में सूजन, पुरुषों में बढ़े हुए ब्रेस्ट, लाल हथेलियां और जॉनडिस हो सकता है। इस स्थिति से बचने के लिए कोच्चि स्थित अमृता इंस्टीट्यूट आॅफ मेडिकल साइंसेज में गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी एंड हेपेटोलॉजी में असिस्टेंट प्रोफेसर हर्षवर्धन राव बी ने कुछ सुझाव दिए हैं। आइए इन्हें जानें- हेल्दी डाइट चुनें, डॉ. हर्षवर्धन का कहना है कि नॉन एल्कोहॉलिक फैटी लिवर से बचने के लिए सब्जियां, सम्पूर्ण अनाज और स्वस्थ वसा से भरपूर डाइट लेना बेहतर होता है। अगर आप मोटापे के शिकार हैं तो निश्चित रूप से आपको अपना खानपान नियंत्रित करने की जरूरत है। रोजाना एक्सरसाइज को अपने रुटीन का हिस्सा बनाने की जरूरत है। अगर आपका वजन आपकी हाइट और रुटीन के हिसाब से सही है, तो आपको उसे बरकरार रखने के लिए मेहनत करने की जरूरत है। हफ्ते की बात करें तो, एक हफ्ते के जितने दिन आप एक्सरसाइज कर सकते हैं उतना अच्छा है। अगर आप रेगुलर एक्सरसाइज नहीं करते हैं, तो अपने डॉक्टर की इजाजत से आप नियमित एक्सरसाइज की शुरूआत कर सकते हैं।आयुर्वेद भी इस बीमारी को नियंत्रित करने में आपकी मदद कर सकता है। आयुर्वेद के मुताबिक बॉडी में मेटाबॉलिज्म और डाइजेशन के लिए कई एंजाइम्स जिम्मेदार होते हैं। इन्हें आयुर्वेद में अग्नि और पित्त कहा जाता है। इसलिए लिवर को उत्तेजक अंग कहा जाता है। यही वजह है कि बहुत मसाले या गर्म तासीर वाली चीजों को लिवर के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। इसमें शराब, कैफन, तंबाकू, गर्म और मसालेदार खाना, पैकेज खाद्य पदार्थों में मौजूद केमिकल या दवाएं और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली चीजें लिवर के लिए अच्छी नहीं होती हैं। जीवा आयुर्वेद के डायरेक्टर डॉ. प्रताप चौहान कहते हैं कि लिवर एक समझदार अंग है और यह खुद को ठीक करना जानता है। हमें बस इसको नुकसान पहुंचाने वाली चीजों से इसे दूर रखना है। इसे ठंडा और साफ रखने वाली चीजों का सेवन करना चाहिए। आयुर्वेद में कड़वे स्वाद वाले जड़ी-बूटियां और खाने की चीजें, जैसे अलोवेरा, नीम, कुतकी,करेला, आंवला, हल्दी, भूमि आंवला, पुनर्नवा और ऐसी ही अन्य चीजों को लीवर की सेहत सुधारने और उसे बचाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। हरी पत्तेदार सब्जियां, चुकंदर, गाजर और सेब भी लिवर की सेहत के लिए बहुत अच्छे माने जाते हैं। एक चुटकी हल्दी को एक कप पानी में कुछ देर उबालें, जब पानी ठंडा हो जाए तो इसमें कुछ बूंदें तकरीबन 1 चम्मच ताजे नींबू के रस की मिलाएं। 1 चम्मच शहद भी इसमें मिला सकते हैं, जिससे यह मीठी हो जाएगी।