मिनीमाता छत्तीसगढ़ की पहली महिला सांसद थीं। समाज का पिछड़ापन दूर करने के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। छुआछूत मिटाने के लिए उन्होंने इतना काम किया कि मिनीमाता को लोग मसीहा के रुप में देखा करते थे। वह किसी राजघराने से नहीं आती थीं पर छतीसगढ़ की जनता उन्हें राजमाता जैसा सम्मान देती है। छत्तीसगढ़ सरकार उनके सम्मान में हर वर्ष महिलाओं के विकास के क्षेत्र में काम करने वालों को मिनीमाता सम्मान देती है। छत्तीसगढ़ का विधानसभा भवन उनके नाम पर बना है। वे 1952, 1957, 1962, 1967 और 1971 में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर सांसद चुनी गईं। संसद में अस्पृश्यता बिल को पास कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाल विवाह, दहेज प्रथा दूर करने के लिए आवाज उठाई तो गरीबी, अशिक्षा दूर करने के लिए भी काम करती रहीं। अनाथ व पीड़ितों की सेवा करना जीवन का प्रमुख लक्ष्य रहा। 1971 में उन्होंने जीवन का आखिरी चुनाव जांजगीर लोकसभा क्षेत्र से जीता था। मिनीमाता का जन्म 1913 में असम के नौगांव में हुआ था। उनका मूल नाम मीनाक्षी देवी था। उनका बचपन गरीबी में गुजरा। मिनीमाता का विवाह छत्तीसगढ़ के सतनामी पंथ के संत गुरुघासी दास के पुत्र गुरु अगम दास के संग हुआ था। मिनीमाता हमेशा गरीबों और दलितों की मदद के लिए तैयार रहती थीं। संसद से लेकर सड़क तक उन्होने इसके लिए आवाज उठाई। वे छत्तीसगढ़ मजदूर कल्याण संगठन, भिलाई की संस्थापक थीं। जब वे सांसद के रुप में दिल्ली में रहती थीं तो उनका वास स्थान एक धर्मशाला जैसा था। मिनीमाता को हिंदी, छत्तीसगढ़ी और अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान था।