दूसरों की पीड़ा दूर करने से होती हैं, खुद की पीड़ा से मुक्ति

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यदि आप दूसरों का दुख-दर्द दूर करते हैं तो निश्चित ही आपकी पीड़ा भी दूर होगी। किसी की मदद करनी हो तो निःस्वार्थ भाव से करें। अनुकूलता में तो सभी गले लगाते हैं जो प्रतिकूलता में गले लगाए, वही सच्चा प्रेमी है। जितने भी भगवान के भक्त हुए हैं, सब प्रतिकूल परिस्थितियों से निकलकर ही महान कहलाए हैं। इनमें सुदामा, धु्रव, प्रहलाद, मीराबाई, सूरदास जैसे न जाने कितने नाम हैं। विपत्ति में ही भगवान मिले हैं। यह संदेश महामाया मंदिर में चल रही श्रीराम कथा में ‘प्रेम का स्वरूप’ विषय पर श्रीरामकिंकर मिशन के अध्यक्ष ऋषिकेश के संत मैथिलीशरण महाराज ने दिया।

भगवान का भोग ही हमारा प्रेम

प्रेम का स्वरूप देखना है तो माता कौशिल्या में देखें। भगवान जन्म लेकर स्वयं उनकी गोद में हैं। लक्ष्मण का प्रेम सबको दिखाई देता है, लेकिन भरत का नहीं। हम जो भगवान को भोग लगाते हैं, वह भोग प्रत्यक्ष रूप से भगवान नहीं ग्रहण करते, किन्तु वह हमारी आस्था है, भगवान के प्रति हमारा प्रेम है। प्रेम का स्वरूप कुछ लोगों के जीवन में दिखाई देता है और कुछ के जीवन में नहीं दिखता।

दूसरों से अपनी तुलना न करें

बच्चों के विवाह में मार्केट वैल्यू देखने वाले पिता को अपने बच्चे, बहू से अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए। जब तक हम दूसरों की तुलना में अपने को तौलते रहेंगे तो कभी सुखी नहीं रह पाएंगे। जिसने राम नाम ले लिया, उसे सब कुछ मिल गया। प्रेम का आधार राम हैं, हमारे आपके जीवन में, शरीर में, व्यवहार में जो गुण-दोष दिख रहे हैं, उसमें कोई तत्व है तो वह है ईश्वर और तभी तक हम जीवित भी हैं। धन्य है, वे लोग जो गृहस्थ होते हुए भी भगवान के चरण में रह रहे हैं।