जाने शिव रात्रि तथा महाशिवरात्रि में क्या हैं अंतर

0
286

देवादिदेव महादेव की उपासना से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। भोलेनाथ लिंग स्वरूप में विराजमान है तो मूर्ति रूप में भी पृथ्वीलोक में कई जगहों पर विराजित है। महादेव स्मरण मात्र से अपने भक्तों पर प्रसन्न हो जाते हैं। महादेव की आराधना रोजाना करने का शास्त्रों में विधान है, लेकिन विशेष अवसरों पर की गई आराधना से विशेष फल की प्राप्ति होती है। सोमवार वारों में सोमवार महादेव का प्रिय वार है। इस दिन शिवजी की आराधना करने से शिव प्रसन्न होते हैं। सोमवार चंद्रमा से जुड़ा हुआ वार है। और चंद्रमा को शिव ने अपने मस्तक पर धारण किया है। महादेव की आराधना से चंद्रदेव को क्षयरोग से सोमनाथ में मुक्ति मिली थी और महादेव ज्योतिर्लिंग रूप में वहां पर है। शैव पंथ में चंद्र के आधार पर ही सभी व्रत – त्योहार मनाने का परंपरा है। इसी तरह प्रदोष व्रत दोनों महीने की त्रयोदशी तिथि को आता है। प्रदोष तिथि पर प्रदोष काल में शिव आराधना का बड़ा महत्व है।

इस दिन उपवास कर शिव पूजा करने से सभी सुखों को भोगने के बाद शिव चरणों में जगह मिलती है। इसी तरह हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी तिथि को शिवरात्रि कहते हैं। इस दिन शिव आराधना का विशेष महत्व है। इस दिन शिवालय में जाकर शिवलिंग पर जल चढ़ाकर भक्ति-भाव से पूजा करने पर शिव कृपा मिलती है। इसी तरह साल में एक बार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि पर्व आता है। मान्यता है इस दिन शिव आराधना करने से सालभर की शिवपूजा का फल मिलता है। शास्त्रों के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन महादेव लिंगरूप में प्रकट हुए थे। ज्योतिष के अनुसार इस दिन चंद्रमा-सूर्य के नजदीक होता है। इसलिए इस दिन शिव पूजा का विशेष विधान है। महाशिवरात्रि को जलरात्रि भी कहा जाता है। इसी तरह सावन मास शिव का प्रिय मास है और इस पूरे महीने में शिव आराधना का विशेष महत्व है। पूरे महीने जल की प्रधानता होती है। इसलिए जलाभिषेक की इस महीने में विशेष महत्ता है। सावन मास में कई जगहों पर शिव नगर भ्रमण कर अपनी प्रजा का हाल-चाल भी जानते हैं।