सरकारी स्कूल के शिक्षक अधिकांश निजी स्कूलों के शिक्षक से अधिक योग्य हैं, फिर भी हमारे बच्चे निजी स्कूल में पढ़ने को मजबूर हैं, ऐसा क्यो? एक बार जरूर सोचिए! जबकि छत्तीसगढ़ राज्य के संदर्भ में शैक्षणिक व्यवस्था का अवलोकन करेंगे तो पाएंगे कि राज्य के अधिकांश भाग में पर्याप्त सरकारी स्कूल और पर्याप्त शिक्षक हैं। सिर्फ इतना ही नही यहां पढ़ाई भी निःशूल्क होती है, छत्तीसगढ़ सरकार हमारे बच्चों को निःशूल्क शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए करोडों रूपये सालाना खर्च करती है फिर भी हम अपने बच्चों को निजी स्कूल में प्रवेश दिलाकर कम-से-कम 10 हजार से 30 हजार रूपये सालाना क्यों बर्बाद कर रहे हैं? प्रायः देखा गया है कि पालक सरकारी स्कूल के शिक्षकों के उपर व्यर्थ दोषारोपण करते हैं जो कि अनुचित है, चाहे निजी स्कूल हो या सरकारी स्कूल हो पढ़ाई सभी स्कूल में लगभग बराबर होता है। जरूरत है तो सिर्फ पालकों के जागरूक और सक्रिय होने की। आपसे निवेदन है अपने बच्चे के भविष्य को सवांरने में अपना भी योगदान दें, यदि किसी कारण से आपके बच्चे के स्कूल में पढ़ाई नही हो रही है तो पालकों को संगठित होकर, उचित शिक्षा के लिए प्रयास करना चाहिए।
ऐसा भी नही है कि आपका बच्चा यदि निजी स्कूल में पढ़ता है तो आप अलग से कोचिंग नही भेजते या आपको घर में गृहकार्य इत्यादि के लिए अपने बच्चे को समय देना ही नही पडता। मगर ऐसा अधिकांशतः देखा गया है कि यदि आपका बच्चा सरकारी स्कूल में पढ़ने जाता है तो आप उन्हें न तो कोचिंग कराते हैं और न तो बच्चे के गृहकार्य में सहयोग करते हैं।
कुछ प्रकरण ऐसा भी मिला है कि यदि किसी पालक के दो बच्चे हैं जिसमें एक बच्चा निजी स्कूल और दूसरा बच्चा सरकारी स्कूल में पढ़ने जाता हैं तो पालक स्वयं ही सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले अपने बच्चे के साथ अन्याय करता है। वह कैसे यह जानने के लिए निरंतर आगे पढ़िए- निजी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे को कोचिंग भेजते हैं, होमवर्क करने में सहयोग करते हैं, उनका टिफिन पैक करते हैं, ड्रेस जूते इत्यादि पहनने में सहयोग करते हैं, स्कूल/स्कूल बस अथवा आटो तक छोडने जाते हैं वापस घर लाते हैं इतना ही नहीं हर महिने उसके स्कूल में जाकर पालक मिटिंग में शामिल होते हैं और शिक्षक से मिलकर उनके सारे कमियों को दूर करने का प्रयास करते हैं। जबकि दूसरी ओर जो बच्चा सरकारी स्कूल में पढ़ने जाता है उसके लिए न तो कोचिंग, न होमवर्क में सहयोग, न पालक मिटिंग और न ही स्कूल जान/आनेे के लिए बस/आटो या अन्य सहयोग। कई प्रकरण में ऐसा भी मिलता है कि पालक सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले अपने ही बच्चे को सही समय में उचित शैक्षणिक सामग्री भी उपलब्ध नही कराते हैं। अंत में जब मार्च-अप्रेल में दोनों बच्चे का रिजल्ट आता है तो निजी स्कूल में पढने वाले बच्चे के नाम पर केक काटते हैं और पिकनिक जाते हैं जबकि सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे के हिस्से उपेक्षा और अपमान से कम कुछ नही मिलता है।
अतः पालकों से अनुरोध है अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा देने के अपने जिम्मेदारी से बचने का प्रयास न करें। माता श्यामा देवी ने कहा है ‘‘शिक्षा ग्रहण पहले भोजन ग्रहण नहले’’ इसलिए सभी काम छोडकर अपने बच्चे को उचित शिक्षा देने का प्रयास करें। पालकों, जनप्रतिनिधियों और सरकारी अधिकारी/कर्मचारियों से यह भी अपील है कि वे अपने बच्चों को यथा संभव सरकारी स्कूल में ही पढ़ायें और अपने बच्चे को उचित सहयोग प्रदान करें।