चंडीगढ़। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बाद अब पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी नीति आयोग से दूरी बना ली है। कैप्टन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में शनिवार को हो रही नीति आयोग की बैठक में भाग लेने नहीं गए। ममता बनर्जी के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह देश के ऐसे दूसरे मुख्यमंत्री हैं जो इस महत्वपूर्ण बैठक में शामिल होने नहीं गए। बैठक में शामिल होने के लिए वित्तमंत्री मनप्रीत सिंह बादल भी नहीं गए। ऐसा नीति आयोग द्वारा अनुमति नहीं देने के कारण हुआ। कैप्टन के बैठक में शामिल न होने का कारण उनका बीमार होना बताया गया है, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह पूरा एक हफ्ता हिमाचल प्रदेश में अपने फार्म पर छुट्टियां बिताकर वीरवार को पंजाब लौटे थे। शुक्रवार शाम को उनके दिल्ली जाने की संभावना थी, लेकिन उन्होंने बैठक में नहीं जाने का फैसला किया। कैप्टन के बीमार होने के चलते उनके मीटिंग में शामिल न होने और उनकी जगह वित्तमंत्री मनप्रीत बादल को भेजने की राज्य सरकार की मांग को नीति आयोग ने ठुकरा दिया है। सरकार ने आयोग से आग्रह किया था कि उनकी जगह वित्तमंत्री मनप्रीत बादल पंजाब का एजेंडा पेश करेंगे, लेकिन आयोग ने साफ कर दिया है कि मीटिंग में केवल मुख्यमंत्री ही बोल सकते हैं। इसलिए उनकी जगह किसी और मंत्री को शामिल होने की इजाजत नहीं दी जा सकती। बाद में आयोग ने राज्य सरकार के चीफ सेक्रेटरी करण अवतार सिंह को मीटिंग में शामिल होने की इजाजत इस शर्त पर दे दी कि वह केवल मीटिंग में शामिल होंगे। उन्हें राज्य सरकार का एजेंडा को रखने का मौका नहीं दिया जाएगा। पंजाब के लिए राहत की बात केवल इतनी ही है कि आयोग की ओर से भेजे गए एजेंडा पर राज्य सरकार का व्यू प्वाइंट मीटिंग में पेश हो जाएगा। पंजाब की ओर से जमीन रहित किसानों को भी प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना में शामिल करने का मुद्दा उठाया गया है। किसानों के खेती संकट का मुद्दा उठाने के लिए सरकार उनके लिए कर्ज राहत में सहयोग देने की मांग भी कर सकती है। महत्वपूर्ण यह है कि देश में भूमिहीन किसानों की कोई गणना नहीं हुई है, जबकि बड़ी संख्या में भूमिहीन किसान जमीन किराए पर लेकर खेतीबाड़ी कर रहे है। लोकसभा चुनाव के बाद से ही केंद्र के प्रति आक्रामक रवैया अपनाने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह भूमिहीन किसान के साथ-साथ खेतिहर मजदूर को भी मासिक सहायता देने के पक्ष में है। नीति आयोग के सामने यह मुद्दा उठा कर पंजाब एक तीर से दो शिकार करना चाहता है। अगर नीति आयोग मुख्यमंत्री के प्रस्ताव को स्वीकार करता है, तो इसका सेहरा कैप्टन के सिर पर बंधेगा। वहीं, अगर इस प्रस्ताव को अस्वीकार किया जाता है, तो कैप्टन पंजाब में इस मुद्दे को उठा सकते हैं कि उन्होंने केंद्र के समक्ष मुद्दा उठाया था, लेकिन उसे अस्वीकार कर दिया गया।