स्मृति जुबिन ईरानी ये उस शख्सियत का नाम है, जिन्होंने अपनी हार में भी जीत के सूत्र तलाशे और पांच साल की कड़ी मशक्कत के बाद गांधी खानदान का अमेठी का किला फतह कर लिया। उसके बाद जब सियासी रंजिश में उनके कार्यकर्ता को मौत के घाट उतार दिया तो उनकी सक्रियता और मिलनसारिता से वह राजनेता से जन जन की नेता बन गई। स्मृति ईरानी के सियासी सफर की शुरूआत अच्छी नहीं रही थी। 2003 में उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की और इसके बाद अपना पहला चुनाव दिल्ली के चांदनी चौक से लड़ा, लेकिन कांग्रेस के कपिल सिब्बल के सामने वह हार गई। 2011 में वह राज्यसभा के लिए चुनी गई। 2014 का लोकसभा चुनाव उन्होंने राहुल गांधी के खिलाफ अमेठी से लड़ा और इनको हार का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद पार्टी ने उनके जज्बे को सलाम किया और उनको मानव संसाधन विभाग की अहम जिम्मेदारी दी। वे लगातार पांच साल तक अमेठी की जनता की सेवा में जुटी रही और आखिर 2019 के चुनाव में उन्होंने 2014 की हार का हिसाब चुकता करते हुए राहुल गांधी को हरा दिया। राजनीति से पहले उनकी पहचान छोटे पर्दे यानी टीवी सीरियल से रही। टीवी के लोकप्रिय धारावाहिक ष्क्योंकी सास भी कभी बहू थी, की बहू तुलसी विरानी हिंदुस्तान के हर घर का पसंदीदा चेहरा थी।