इंदौर लोकसभा सीट पॉलिटिकली एक हाइप्रोफाइल सीट हो गई है। यहां मुकाबला सीधे तौर पर मुख्यमंत्री कमलनाथ और शिवराज सिंह चौहान के बीच है। दोनों की प्रतिष्ठा यहां दांव पर है। कांग्रेस उम्मीदवार पंकज संघवी का टिकट कमलनाथ का है। वहीं तमाम विरोध और पूरी ताकत लगाते हुए शिवराज सिंह ने शंकर लालवानी को टिकट दिलवाकर अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगा दी है। इंदौर भाजपा का मजबूत किला है। जिसे फतह करने के लिए संघवी अलग-अलग चुनावों में तीन बार मैदान में उतरे लेकिन तीनों ही बार हार गए लेकिन उनकी हार मजबूत मानी गई। उनके मुकाबले का कोई दमदार नेता कांग्रेस के पास नहीं था जो भाजपा के खिलाफ चुनाव बराबरी से लड़ सके। कांग्रेस सचिव एवं प्रदेश के कैबिनेट मंत्री जीतू पटवारी टिकट के लिए दमदारी से लगे हुए थे। उनकी उम्मीदवारी को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने लगभग मोहर भी लगा दी थी लेकिन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने किसी भी विधायक या मंत्री को लोकसभा चुनाव में मैदान में नहीं उतारने का दबाव बनाया और संघवी का टिकट फाइनल कर दिया। स्पीकर सुमित्रा महाजन की 8 बार की जीत ने पिछले 30 साल से इंदौर को भाजपा का मजबूत गढ़ बना दिया है। पार्टी के सामने चुनौती अब इस सीट को बरकरार रखने की है। विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा ने यहां अपनी ताकत को खोया है। विधानसभा की आठ में से चार सीट कांग्रेस ले गई जो ग्रामीण इलाके की सीट्स हैं। यहां पर भाजपा इस बार भी मुसीबत में है। लालवानी शहरी इलाके के नेता हैं। वे पार्टी में अभी तक सिर्फ पार्षद रहे हैं। जिस कारण ग्रामीण क्षेत्र में पहचान का संकट आ रहा है। संगठन ने महाजन के ग्रामीण क्षेत्र में लालवानी के साथ प्रचार की रणनीति बनाई है ताकि ताई का वोट लालवानी को ट्रांसफर हो सके। भाजपा के अंदरूनी हालातों को भांप कर इंदौर में चुनाव संघ कार्यालय शिफ्ट हो गया है। जहां पर बैठकें हो रही हैं और भाजपा स्थानीय संगठन के नेताओं से रिर्पोट्स ली जा रही हैं। शिवराज सिंह ने टिकट होते ही अपनी सक्रियता इंदौर में बढ़ाने के लिए बैठक रख ली थी। जिसे निरस्त किया गया। संघ का कहना था कि यह चुनाव किसी की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का नहीं पूरे संगठन का है। कांग्रेस में भी अंदरूनी हालात आपसी खींचतान के हैं। इंदौर से तीन कैबिनेट मंत्री हैं। दिग्विजय सिंह समर्थक पटवारी, सिंधिया समर्थक तुलसी सिलावट, कमलनाथ समर्थक सज्जनसिंह वर्मा। मुख्यमंत्री कमलनाथ अपने मंत्रियों के संपर्क में है और बार बार मैसेज दे रहे हैं कि इस बार नहीं तो कभी नहीं। यह सोचकर कांग्रेस यहां मैदान पकड़े। प्रदेश के बड़े नेता सिंधिया और दिग्विजय सिंह स्वयं चुनाव मैदान में हैं। कमलनाथ स्वयं विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। छिंदवाड़ा से नकुलनाथ भी उम्मीदवार हैं। इसे देखते हुए अब इंदौर का चुनाव पूरी तरह संगठन और स्थानीय मंत्रियों के दम पर लड़ा जा रहा है। इंदौर में जातिगत समीकरण देखें तो यहां मुकाबला मराठी, सिंधी और जैन वोटों के बीच भी है। संघवी जैन हैं जिसका फायदा उन्हें इस चुनाव में मिल सकता है। सिंधी कार्ड खेलने से भाजपा ने अपने वोट्स को मजबूती दे दी है। महाजन के बाद मराठी वोट किस ओर झुकते हैं यह देखना होगा। यह कुल वोट 10 लाख के करीब हैं। जहां इस बार उठापटक है। मुस्लिम, ओबीसी यह फेक्टर भी 24 लाख के इस लोकसभा क्षेत्र की दिशा तय करेगा। कांग्रेस के कैबिनेट मंत्री एवं संघवी की चुनावी कमान को देख रहे जीतू पटवारी ने कहा कि कांग्रेस का कार्यकर्ता बहुत उत्साह में है और इस बार हम भाजपा के इस किले को फतह करेंगे। भाजपा नेता गोविंद मालू का कहना है कि पार्टी पूरी तरह से मजबूती से मैदान में है। भाजपा लोकतांत्रिक पार्टी है। सबको टिकट मांगने का हक है। हमारे बीच में से एक साधारण कार्यकर्ता को उम्मीदवार बनाकर पार्टी ने एक मजबूत मैसेज दिया है। पूरा संगठन और नेता एकजुट होकर चुनाव लड रहे हैं।