आदिवासियों का सांस्कृतिक पर्व भगोरिया 14 मार्च से आरंभ, जानिए कैसे पड़ा भगोरिया मेले का नाम

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आदिवासियों का सांस्कृतिक पर्व भगोरिया 14 मार्च से आरंभ हो रहा है। झाबुआ के साथ आलीराजपुर और धार जिले में भी मस्ती और उल्लास के इस त्योहार की धूम रहती है। भगोरिया मेले ने नजारे देखने ही देश ही नहीं विदेशों से भी सैलानी इन जिलों में पहुंचते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि भगोरिया की शुरूआत कैसे हुई। मजदूरी करने और दूर-दराज के क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी सप्ताह में एक बार बाजार में वस्तुओं का विनिमय करने के लिए आते रहे हैं। इससे उनकी दैनिक आवश्यकता की पूर्ति प्राचीनकाल से ही होती रही है। हर स्थान या बड़े कस्बे में लगने वाले इन साप्ताहिक बाजारों को यहां की भाषा में हाट कहा जाता है। रियासत काल में होली की गोट लेने का चलन आरंभ हो गया। धुलेंडी के एक सप्ताह पहले से गुलालिया हाट आयोजित होने लगे। इन गुलालिया हाटों में रियासत के आम व खास लोग एकसाथ होली मनाने लगे। वर्ष में एक बार राजा और जमींदार या अन्य प्रभावशाली लोग इनाम के रूप में ग्रामीणों को इस दौरान कुछ उपहार भी देने लगे, जिसे होली की गोट कहा जाने लगा। बाद में यही गुलालिया हाट, भगोरिया हाट में बदल गए। प्राचीन कहावत यह भी है कि माताजी के श्राप से भगोर उजड़ गया था। बाद में विशेष प्रयास करने पर भगोर वापस बसा और इसी खुशी में वहां मेला लगाया गया। बाद में यह मेले जगह-जगह होने लगे। भगोर से शुरूआत हुई थी, इसलिए कहा जाता है कि भगोरिया नाम पड़ गया।