गरियाबंद जिला अस्पताल से टीम गठित कर सुपेबेरा डोर टू डोर किया इलाज डॉ महावीर अग्रवाल (एमडी मेडिसिन)और पोखराज साहू एनटीसीपी (सामाजिक कार्यकर्ता) द्वारा देवभोग टीम राजेश साहू आरएमए, शरद बघेल एलटी) के साथ सुपेबेड़ा ब्लॉक देवभोग का दौरा किया, स्क्रीनिंग और डोर टू डोर सर्वे और चेकअप भी किया। जरूरतमंदों को दवा व इलाज उपलब्ध कराया गया
सुपेबेड़ा गांव का वह इलाका जहां प्रदूषित जल के चलते बोरिंग बंद की गई और दूसरी बोरिंग करके पानी की टंकी बनाकर खानापूर्ति कर दी गई.छत्तीसगढ़ सरकार पर गरियाबंद जिले के कुछ ग्रामीणों ने गंभीर आरोप लगाए हैं. ग्रामीणों का आरोप है कि उनका गांव हीरा एवं एलेक्जेंडराइट (एक प्रकार का रत्न) खदान क्षेत्र में आता है. इस क्षेत्र से ग्रामीणों को बाहर निकालने के लिए सरकार साजिशन उनके स्वास्थ्य की उपेक्षा कर रही है. लगभग दो हजार की आबादी वाले इस गांव में वर्तमान में किडनी और लीवर संबंधी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं. गरियाबंद जिले की देवभोग तहसील के अंतर्गत सुपेबेड़ा गांव आता है. 1986 में एक सर्वे रिपोर्ट में यहां एक हीरा खदान होने की आशंका व्यक्त की गयी. ‘नब्बे के दशक में तत्कालीन सरकार ने एक मल्टीनेशनल कंपनी को यह पता लगाने का काम सौंपा. जिसकी जांच में भी यहां हीरा खदान होने की पुष्टि हुई. यह पता लगते ही वहां अवैध खनन शुरू हो गया. दशक भर तक यह चला. जब यह क्षेत्र मध्य प्रदेश में आता था, तब भी टेकओवर कर लिया और खदान के मुहाने को कंक्रीट व मुर्रम से पाट दिया ग्रामीणों का मानना है कि तब से ही यहां अकाल मौतों का सिलसिला शुरू हो गया. किडनी फेलियर की शिकायतें आने लगीं और धीरे-धीरे मौतों का आंकड़ा बढ़ता गया. मौत किडनी फेलियर के चलते हुई है. और खास बात यह रही कि सभी मिड और यंग एज के रहे हैं.और देशी शराब का सेबन करना ऐसा भी नहीं है कि ये महज सामाजिक कार्यकर्ताओं या ग्रामीणों के आरोप हैं. सरकार भी ग्रामीणों में बढ़ रहे किडनी रोग की समस्या को स्वीकारती है. इसी का नतीजा रहा कि विवाद बढ़ने पर बीते वर्ष के अंत में राजधानी रायपुर के मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ग्रामीणों के इलाज के लिए अलग से वार्ड का गठन किया गया.बीते दिनों इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने अपनी रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की कि पानी में फ्लोराइड घुला हुआ है. वहीं इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने मिट्टी की जांच की, जिसमें कैडमियम, क्रोमियम, आर्सेनिक जैसे भारी और हानिकारक तत्व पाए गए. ये सभी सीधे किडनी को नुकसान पहुंचातेहैंआर्सेनिक-फ्लोराइड का मिश्रण ज्यादा है. जो किडनी संबंधित रोगों के लिए उत्तरदायी है. उन्होंने यहां बोरिंग को बंद करा दिया और नया बोरिंग खोद दिया. पहले तो ऐसी अस्वाभाविक मौतें होती नहीं थीं. जो हुआ इसी दौरान हुआ है. गांव में किसी परिवार में बुजुर्ग नहीं बचे हैं. 10-12 वर्ष के बच्चों तक की किडनी खराब हो रही हैं. 45 फीसद महिलाएं विधवा हो चुकी हैं ग्रामीणों का कहना है कि गांव में ट्यूबवेल और हैंडपंप 1991 में चालू हुए थे. अगर पानी में तब से ही खराबी रही होती तो पहले भी लोगों में किडनी संबंधी समस्याएं देखी जातीं. लेकिन यह सब 2005 के बाद ही हुआ.यहां सवाल उठता है कि 2005 में ऐसा क्या हुआ कि क्षेत्र का पानी प्रदूषित हो गया? इस पर ग्रामीणों का मानना है कि जब मल्टीनेशनल कंपनी ने यहां अपने कदम रखे, उसी दौरान कोई बड़ा षड्यंत्र हुआ है. ताकि लोग गांव छोड़कर चले जाएं. शकस इस बात का भी है कि उस दौरान वहां धमाके भी किए गए थे, तभी कोई रसायन छोड़ा गया जो भूजल में चला गया और अब धीमे ज़हर की तरह लोगों पर असर कर रहा है. ग्रामीण ही वहां से पलायन कर जाएंगे तो रोक-टोक वाला कोई नहीं होगा. और सरकार के चहेतों को अवैध तौर पर हीरा लूटने की छूट मिल जाएगीसंकेत के अनुसार, केवल सुपेबेड़ा गांव ही नहीं, खनन क्षेत्र से लगे आसपास के अन्य तीन गांवों के भी यही हाल हैं. वे कहते हैं, ‘खाली किडनी खराब होने का मामला नहीं है. इनका लीवर भी क्षतिग्रस्त है. गांव वालों की पीली आंखें बयान करती हैं कि मामला तमाम अंगों के ख़राब होने का है.’इस संबंध में करीब दर्जनभर ग्रामीणों ने राजभवन पहुंचकर इसकी शिकायत भी की है. उनका यह भी कहना है कि इलाज कराने में उनकी जमीनें तक बिक चुकी हैं.