जनरेटिंग कंपनी की देय बकाया राशि विषय पर केन्द्रित एक उच्चस्तरीय बैठक में छत्तीसगढ़ स्टेट पाॅवर कंपनीज के अध्यक्ष शैलेन्द्र शुक्ला ने कहा- राज्य की भौगोलिक एवं आर्थिक परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए विद्युत दरों का निर्धारण होना चाहिए

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रायपुर:- देशभर में विद्युत की दरों में एकरूपता, विभिन्न प्रदेशो की जनरेटिंग कंपनी की देय बकाया राशि विषय पर केन्द्रित एक उच्चस्तरीय बैठक आज नई दिल्ली में केन्द्रीय विद्युत राज्य मंत्री आर. के. सिंह द्वारा आहूत की गई जिसमें उपस्थित केन्द्रीय ऊर्जा सचिव संजीव नंदन सहाय के समक्ष विभिन्न राज्यों के ऊर्जा सचिव, पाॅवर कंपनीज के उच्चाधिकारियों ने पाॅवर टैरिफ पाॅलिसी पर अपने अभिमत दिये। बैठक में छत्तीसगढ़ स्टेट पाॅवर कंपनीज के अध्यक्ष शैलेन्द्र शुक्ला ने छत्तीसगढ़ राज्य का पक्ष रखा। उन्होंने बताया कि तेलंगाना राज्य के ऊपर छत्तीसगढ़ राज्य की बड़ी बकाया राशि लंबित है। लगभग दो हजार करोड़ रूपये की राशि का भुगतान तेलंगाना राज्य द्वारा छत्तीसगढ़ राज्य को नहीं किया गया है। इस हेतु गंभीर आपत्ति दर्ज करते हुए उन्होंने तेलंगाना के विरूद्ध रेगुलेटरी कार्यवाही किये जाने की भी बात रखी। आगे उन्होंने बताया कि दश की पाॅवर जनरेटिंग कंपनियों के भुगतान के मामले में छत्तीसगढ़ की स्थिति अत्यंत ही बेहतर है। समय पर भुगतान के मामले में छत्तीसगढ़ दश के तीन अग्रणी राज्यों में शामिल है।


टैरिफ पालिसी के निर्धारण पर चैयरमेन श्री शुक्ला ने अभिमत व्यक्त करते हुए कहा कि राज्य की भौगोलिक एवं आर्थिक परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए विद्युत दरों का निर्धारण होना चाहिए। सभी राज्यों के लिए एक समान (यूनिफार्म टैरिफ) विद्युत दर की नीति का निर्धारण किया जाना अनेक दृष्टि से न्यायसंगत नहीं होगा। उन्होंने तर्क दिया कि सभी प्रदेशो में विद्युत उत्पादन का जरिया अलग-अलग होता है, साथ ही उपभोक्ता भी विभिन्न श्रेणी के होते हैं।बैठक में उन्होंने इस बात को विशेष रूप से रेखांकित किया कि मानवीय आवष्यकताओं में विद्युत का विशेष स्थान है, अतः एक बिजली एक दाम की नीति अव्यवहारिक होगी। विद्युत दरों के निर्धारण में विद्युत क्रय का एकीकृत लागत, अनेक स्त्रोतों से विभिन्न दरों पर खरीदी गई बिजली, स्थापित विद्युत सयंत्रों का जीवनकाल – कार्यनिष्पत्ति, विद्युत उत्पादन हेतु प्रयुक्त सामग्रियों की उपलब्धता तथा विद्युत खरीदी समझौता ऐसे कारक है जिनका व्यापक प्रभाव होता है। छत्तीसगढ़ के संदर्भ में देखा जाय तो यहां की विद्युत की मांग का 50 प्रतशत से अधिक हिस्से के लिए संपादित समझौते (पाॅवर परर्चेश एग्रीमेंट) काफी पहले किये गये है जिनमें अब मोलभाव (रिनियगोसिएशन) की कोई गुजांश नहीं है।