महाराष्ट्र। महाराष्ट्र में शनिवार सुबह अप्रत्याशित तरीके से देवेंद्र फडणवीस ने अजित पवार के साथ मिलकर फिर से सरकार बना ली और मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। अब फडणवीस के सामने असली चुनौती महाराष्ट्र विधानसभा में फ्लोर टेस्ट में बहुमत साबित करने की है, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को 30 नवंबर से पहले विधानसभा में बहुमत साबित करना होगा, लेकिन इससे पहले सत्ता पक्ष और विपक्ष अपने-अपने खेमे के विधायकों को सुरक्षित जगह पहुंचाने की कोशिश में जुट गए हैं। महाराष्ट्र में बदले राजनीतिक घटनाक्रम के बाद कांग्रेस अपने विधायकों को भोपाल की जयपुर शिफ्ट कर रही है, जबकि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के बागी 8 विधायकों को दिल्ली ले जाया गया है, इन बागी विधायकों को चार्टर्ड विमान से दिल्ली पहुंचाया गया हैं। वहीं, कांग्रेस पहले अपने विधायकों को भोपाल शिफ्ट करने की प्लानिंग में थी, लेकिन बाद में उसने जयपुर शिफ्ट करने का फैसला कर लिया, कांग्रेस को भोपाल की बजाय जयपुर में अपने विधायकों को रखना ज्यादा सुरक्षित लगता है। वहीं, महाराष्ट्र में इस महा-उलटफेर के बाद मीडिया के सामने आए शरद पवार ने दावा किया कि अजित पवार ने उनकी पार्टी तोड़ दी, उनका भरोसा तोड़ दिया, लेकिन जिस भतीजे अजित पवार ने उनकी पार्टी को इतना बड़ा नुकसान पहुंचाया उसे तुरंत पार्टी से बाहर करने के बजाए शरद पवार ने उनका मामला अनुशासन समिति को भेज दिया। इसके बाद से सवाल उठाए जा रहे हैं कि शरद पवार ने अजित पवार को तत्काल पार्टी से बाहर क्यों नहीं निकाला? उन्होंने अजित पवार को विधायक दल का नेता क्यों बने रहने दिया। अब विधानसभा में फ्लोर टेस्ट में अजित पवार के इशारे पर ही एनसीपी विधायक वोट करेंगे और जो नहीं करेंगे उनकी सदस्यता दल-बदल कानून के तहत दांव पर लग जाएगी।