वॉशिंगटन। आखिरकार पाकिस्तान में छिपा बैठा आतंकियों का सरगना मौलामा मसूद अजहर ग्लोबल टेररिस्ट घोषित हो गया। भारत की इस कोशिश में अब तक चीन सबसे बड़ा अड़ंगा थाए जिसे भी झुकना पड़ा। खबर है कि पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को ही आतंकवादी देश घोषित करने का अभियान छेड़ दिया था। उसे अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, आॅस्ट्रेलिया जैसे देशों का समर्थन भी मिल रहा था। वहीं, एफएटीएफ यानी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स में भी पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट करने की तैयारी चल रही थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिकए यह सब देख पाकिस्तान घबरा गया और उसने मसूद अजहर को बलि पर चढ़ा दिया यानी अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करने का विरोध बंद कर दिया। मसूद अजहर के मामले में भारत को मिल रहे चौतरफा समर्थन को देख चीन को भी पीछे हटना पड़ा। बुधवार को न्यूयॉर्क में सुबह 9 बजे संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन को इंडोनेशिया के दूत से संयुक्त राष्ट्र का एक संदेश मिला। इसमें उन्हें बताया गया कि जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अजहर की सूची के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में किसी भी देश को कोई आपत्ति नहीं है। पाकिस्तान के इशारे पर अजहर की लिस्टिंग पर आपत्ति नहीं जताकरए चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1267 प्रतिबंध समिति में वैश्विक आतंकवादी के रूप में नामित करने के लिए 10 साल की लगातार रोक के बाद आखिरकार अपने रुख को बदल दिया। भारत के लिए यह एक बड़ी कूटनीतिक सफलता थी क्योंकि व्यस्त वार्ता के बाद बीजिंग ने 13 मार्च को मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने के प्रयास पर टेक्निकल होल्ड लगा दिया था। अमेरिका से भारी-भरकम दबाव के साथ ही फ्रांस और यूके की तरफ से मिल रही सहायता से धीरे-धीरे नई दिल्ली के पक्ष में हवा बनी। पहली सफलता 21 फरवरी को यूएनएससी का दिया गया बयान था। इसमें पुलवामा आतंकवादी हमले की निंदा की गई थी। यह एक ऐतिहासिक पहल थी क्योंकि कभी भी यूएनएससी ने कश्मीर में आतंकवादी हमलों पर निंदा का बयान जारी नहीं किया था और वह भी सुरक्षाकर्मियों को लेकर। अकबरुद्दीन ने कहा कि यह सब इतना आसान नहीं था। कूटनीति में देश अपने पक्ष और विपक्षों पर विचार करते हैं। इस बार मसूद को लेकर एक व्यापक वैश्विक गठबंधन बन गया था और भारत इसमें अकेला नहीं था। कई अन्य देशों जिसमें अफ्रीका से लेकर यूरोप, अमेरिका, आॅस्ट्रेलिया, जापान और कनाडा तक मार्च में मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने के शुरूआती कदम का समर्थन किया था। जब चीन ने लगातार चौथी बार मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित होने से बचाने के लिए इस बार छह महीने के लिए टेक्निकल होल्ड लगाया। तब अमेरिका ने मसूद के खिलाफ नए प्रस्ताव को लाने का फैसला किया क्योंकि वह छह महीने के अंत तक इंतजार नहीं करना चाहता था। दरअसल, अमेरिका का मानना था कि इस वक्त लोहा गर्म है और मसूद के खिलाफ जो माहौल बना है, उसे खत्म नहीं होने देना चाहिए। इसलिए अजहर को सूचीबद्ध करने के लिए एक नए कदम में, अमेरिका ने सुरक्षा परिषद के सदस्यों को बताया कि यह प्रस्ताव यूके और फ्रांस के साथ, में एक सार्वजनिक वोट के लिए आगे की चर्चा में लाया जा रहा है। अमेरिका ने महसूस किया कि इससे चीन को एक अजीब स्थिति में फंस जाएगा क्योंकि उसे सार्वजनिक रूप से अपने वीटो का बचाव करना होगा। आखिरकार रणनीतिक उद्देश्य एक व्यक्ति को सूचीबद्ध करने का था और यह लक्ष्य स्पष्ट था। चीन के लिए एक आतंकवादी का सार्वजनिक रूप से बचाव करने का मतलब सार्वजनिक सेंसर करना होगा। इसका सीधा प्रसारण होगा। सूत्रों ने कहा कि चीन इस इस मुद्दे पर एक सार्वजनिक चर्चा से पूरी तरह से बचना चाहेगा क्योंकि उसे पीआर के रूप में इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी होगी। लिहाजा, चीन ने इस मामले में अपने हित और नुकसान को देखते हुए इस बार मसूद अजहर पर लगाए गए टेक्निकल होल्ड को हटाने का फैसला किया। उधर, भारत ने भी इस मामले में कोई ढ़ील नहीं दी और बीजिंग के लिए अपने संदेश भेजे। साथ ही विदेश सचिव विजय गोखले ने वाशिंगटन, बीजिंग और मास्को की राजनयिक यात्राएं कर कूटनीति को आगे बढ़ाया। जब पाकिस्तान को लगा कि उसका मजबूत और सदाबहार दोस्त चीन पीछे हट रहा है, तो बाद में उसे भी इसकी बड़ी कीमत चुकानी होगी। लिहाजा, उसने मसूद अजहर की बलि देना ही बेहतर समझा। जानकार बताते हैं कि ऐसा नहीं करने पर भारत का अगला कदम पूरे पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित करने का होता।