राजस्थान के रण में इस बार लोकसभा का चुनाव बेहद दिलचस्प होनेवाला है। सितंबर 2018 में उत्तर-पूर्वी शेखावटी क्षेत्र में ऋण माफी को लेकर किसानों ने बड़ा आंदोलन किया था। जिसके बाद बीजेपी के खिलाफ लोगों में धारणाएं बनीं। तीन महीने बाद चुनाव प्रचार में ऋण माफी का मुद्दा बनाकर कांग्रेस ने विधानसभा में क्लीन स्वीप किया। कांग्रेस ने इस क्षेत्र की 31 में से 20 सीटें जीत ली, जो उसने 2013 के चुनाव में सिर्फ चार सीटें जीती थी। फरवरी में किसानों ने एक बार फिर से संघर्ष का रास्ता अख्तियार करते हुए अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ बड़ा आंदोलन करने की धमकी दी। उन्होंने अशोक गहलोत की सरकार पर पूर्ण ऋण माफी और किसानों के लिए स्वामी नाथन आयोग की सिफारिश जिसमें लागत का डेढ़ गुणा समर्थन मूल्य देना था, उसे लागू करने में विफल रहने का आरोप लगाया। सितंबर में प्रदर्शन की अगुवाई करन ेवाले आॅल इंडिया किसान सभा के आम्र राम ने कहा, किसानों अपने वादों को पूरा करने में विफल रही। उन्हें लोकसभा चुनाव में इसकी कीमत चुकानी होगी। राजस्थान के चुनावों में हमेशा कृषि चुनावी मुद्दों में महत्वपूर्ण रहा है। उसकी वजह ये हैं कि यहां की सत्तर फीसदी गांवों में बसती है। ऐसे में कांग्रेस की तरफ से सरकार बनने के दस दिनों के भीतर फसल ऋण माफ करने के वादे ने ग्रामीण मतदाताओं को लुभाया। राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस ने बीजेपी के मुकाबले बेहतर परफॉर्म किया, जहां पर उसका स्ट्राइक 60 फीसदी रहा। जबकि ग्रामीण जिलों जैसे जोधपुर, बाड़मेर, चुरू, झूनझूनु, सिकर, दौसा, भरतपुर और टोक सवाई माधोपुर में बढ़त हासिल की थी।