भारतीय राजनीति में बीते एक दशक में अगर कोई चेहरा नायक के रूप में उभरा है तो वह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का है। सामान्य परिवार से आने वाले केजरीवाल पार्टी का गठन करने के एक साल बाद ही दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गए। यही नहीं दोबारा चुनाव में 70 में से 67 सीटों पर जीत के साथ प्रचंड बहुमत हासिल कर लिया। अरविंद केजरीवाल भिवाड़ी के एक सामान्य परिवार से आते हैं। उनके पिता पेशे से इलेक्ट्रिक इंजीनियर थे। वह खुद आईआईटी से मैकेनिकल इंजीनियर हैं। 1992 में आईआरएस में नौकरी करने के दौरान ही उन्होंने 1999 में परिवर्तन नाम के स्वयंसेवी संगठन का गठन किया। संगठन राशन कार्ड, बिजली के बिल को लेकर गरीबों के बीच काम करती थी। उनके इस जमीनी कार्य के लिए 2006 में मैग्सेसे पुरस्कार भी मिला। उसी वर्ष उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। 2006 में उन्होंने पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन का गठन किया। 2010 में देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ जो आवाज उठनी शुरू हुई तो 2011 में लोकपाल को लेकर अन्ना आंदोलन की मुख्य धुरी बनकर केजरीवाल सबके सामने आए। आंदोलन की लड़ाई से हल निकलता नहीं देख उन्होंने अन्ना हजारे के विरोध के बाद भी 26 नवंबर 2012 को आम आदमी पार्टी का गठन किया। ना सिर्फ गठन किया बल्कि 2013 दिसंबर में पहली बार पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ा। तीन बार सीएम रहीं शीला दीक्षित को हराकर उन्होंने सभी को चौंका दिया। केजरीवाल सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते है। 16 अगस्त 1968 को हरियाणा के भिवाड़ी में इलेक्ट्रिक इंजीनियर गोविंद राम केजरीवाल के घर पैदा हुए। पढ़ाई हिसार के कैंपस स्कूल में हुई। बचपन गाजियाबाद, हिसार व सोनीपत में बीता उसके बाद 1989 में आईआईटी खड़्गपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की और फिर टाटा स्टील में नौकरी की। 1992 में इस्तीफा देकर उसी वर्ष साल आईआरएस सेवा में चुने गए । आईआरएस में चुने जाने के बाद प्रशिक्षण के दौरान मसूरी में सुनीता केजरीवाल से मिले और उनसे शादी की। 1999 में परिवर्तन नाम के एनजीओ का गठन किया। फिर 2006 में मैग्सेसे मिलने के बाद आईआरएस से इस्तीफा दे दिया। सीएम का राजनीतिक जीवन- सीएम अरविंद केजरीवाल ने 26 नवंबर 2012 में अन्ना आंदोलन के बाद आम आदमी पार्टी के नाम से राजनीतिक दल का गठन किया। 04 दिसंबर 2013 में मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ नई दिल्ली विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और जीते। 28 दिसंबर 2013 को 28 विधायकों के साथ कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली में पहली बार मुख्यमंत्री बने। 49 दिन में इस्तीफा देना पड़ा। 2014 के लोकसभा में नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़े, हार गए, मगर 2 लाख से अधिक वोट मिले। 2015 में दोबारा दिल्ली की 70 में रिकॉर्ड 67 सीटें जीतकर दिल्ली के दोबारा मुख्यमंत्री बने।