नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने अपने आवासीय कार्यालयों में सिर्फ पुरुष स्टाफ रखने की मांग की है। चीफ जस्टिस आॅफ इंडिया रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगने के बाद सर्वोच्च अदालत के अन्य न्यायाधीशों ने यह मांग की है। इस मामले में सीजेआई की ओर से दुख जाहिर करते हुए अपने ऊपर लगाए गए आरोपों को बे-बुनियाद बताया। उन्होंने कहा कि इसके पीछे कोई बड़ी ताकत हैं, जो सीजेआई के कार्यकाल को निष्क्रिय करना चाहते हैं। उन्होंने सोमवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट के कई जजों ने उनके साथ खड़े रहने की बात कही थी। यह मुलाकात करीब 20 मिनट चली। हालांकि, सीजेआई ने कहा कि यह मांग पूरी करना मुश्किल है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के स्टाफ में 60 प्रतिशत महिलाएं हैं। उधर, कुछ जजों ने महिला लॉ क्लर्क को सहायक के रूप में रखने को लेकर चिंता जाहिर की है, ताकि वे भी उस स्थिति से बच सकें, जिस स्थिति से खुद सीजेआई गुजर रहे हैं। वे देर रात तक न्यायाधीश के आवासीय कार्यालय में काम करना पसंद करते हैं, जिन मामलों की सुनवाई अगले कुछ दिनों में होनी है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस मुद्दे पर सीजेआई ने बाकी जजों से कहा है कि इस पर बहस कर रास्ता निकालकर भावी सीजेआई और सुप्रीम कोर्ट जजों को ऐसे अभद्र हमलों से बचाने का रास्ता तलाश करना चाहिए। कई जजों ने सीजेआई से मिलकर इस मामले पर उनसे अपनी चिंता जाहिर की। उन्होंने उस आरोप को अजीबोगरीब बताया कि सीजेआई ने नौकरी से बर्खास्त पूर्व महिला कर्मचारी और उसके पति को दोपहर के खाने और अपने शपथ-ग्रहण समारोह पर बुलाया था। इस पर एक न्यायाधीश ने कहा कि सीजेआई ने सभी स्टाफ सदस्यों को उनके पति या पत्नी के साथ न्योता दिया था। अगर आरोप लगाने वाली महिला को भी बुलाया गया तो इसमें क्या खास बात है? कुछ जजों ने कहा कि वे ऐसी महिला लॉ क्लर्कों को जानते हैं जो जजों के आवासीय कार्यालयों में शोध और केस फाइलों से जुड़े महत्वपूर्ण काम करती हैं। उन्होंने कहा कि सभी लॉ क्लर्क देर शाम तक काम करते हैं। वे एक तरह से परिवार का हिस्सा बन जाते हैं और अक्सर जजों के घरों में खाने के लिए बुलाए जाते हैं। क्या भविष्य में इसका प्रतिकूल माहौल देखने को मिलेगा? अब हम इसे लेकर आश्वस्त नहीं हैं।