वाशिंगटन, प्रेट्र। भारत में अनुमानित तौर पर छह लाख डॉक्टर और 20 लाख नर्सों की कमी है। शोधकतार्ओं का मानना है कि भारत में एंटीबायोटिक दवाएं देने के लिए उचित तरीके से प्रशिक्षित स्टाफ की कमी है। इसके कारण जीवन बचाने वाली दवाएं मरीजों को नहीं मिल पाती हैं। अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज डाइनामिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी (सीडीडीइपी) की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में लोगों को बीमारी पर होने वाला 65 फीसद खर्च खुद उठाना पड़ता है। इसके कारण हर साल 5.7 करोड़ लोग गरीबी की खाई में धंसते चले जाते हैं। दुनियाभर में हर साल 57 लाख ऐसे लोगों की मौत होती है, जिन्हें एंटीबायोटिक दवाओं से बचाया जा सकता था। ये मौतें कम और मध्यम आय वाले देशों में ज्यादा होती हैं। सीडीडीइपी ने यूगांडा, भारत और जर्मनी में हितकारों का साक्षात्कार किया। उसने सामग्री का अध्ययन कर कम, मध्य और उच्च आय वाले देशों में उन पहलुओं की पहचान की, जिनके कारण मरीज को एंटीबायोटिक दवाएं नहीं मिलती हैं। सीडीडीइपी में निदेशक रमणन लक्ष्मीनारायण ने कहा- एंटीबायोटिक दवा के प्रतिरोध से होने वाली मौतों की तुलना में इसके नहीं मिलने के कारण ज्यादा लोगों की मौतें हो रही हैं। भारत में हर 10,189 लोगों पर एक सरकारी डॉक्टर है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हर एक हजार लोगों पर एक डॉक्टर की सिफारिश की है। इस तरह छह लाख डॉक्टरों की कमी है। भारत में हर 483 लोगों पर एक नर्स है, यानी 20 लाख नर्सों की कमी है।