ध्वनि से पांच गुना तेज रफ्तार से भागने वाली हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइलों को डीआरडीओ अगले चार साल में तैयार कर लेगा। अभी दुनिया के किसी भी देश के पास ऐसी मिसाइल नहीं है। भारत के अलावा अमेरिका, चीन और रूस भी इन मिसाइलों पर काम कर रहे हैं। डीएमएसआरडीई में आयोजित वैज्ञानिक सेमिनार में बतौर मुख्य अतिथि आए डीआरडीओ के नेवल सिस्टम के महानिदेशक डॉ. एसवी कामत ने बुधवार को ये जानकारियां दीं। डॉ. कामत ने बताया कि डीआरडीओ सात क्लस्टर में विभाजित है और संगठन के 52 लैब हैं। भविष्य के रक्षा व मारक हथियारों के बारे में उन्होंने बताया कि हाइपरसोनिक मिसाइलों पर काम तेजी से हो रहा है। ध्वनि की रफ्तार से पांच गुना ज्यादा क्षमता की मिसाइल बनाने के लिए ऐसे मैटैरियल तैयार किए गए हैं, जो 1500 डिग्री सेल्सियस का तापमान भी आसानी से झेल लें। साथ में उनका वजन कम हो ताकि वायुमंडल के दाब को आसानी से झेल ले। डीएमएसआरडीई के एडीश्नल कमिश्नर डॉ. डीएन त्रिपाठी के साथ डीआरडीओ के महानिदेशक डॉ. कामत ने बताया कि नौसेना की ताकत बढ़ाने के लिए नए सोनार बनाए जा रहे हैं। समंदर की गहराइयों में रडार आदि कोई भी निगरानी सिस्टम काम नहीं कर सकता। वहां दुश्मन की पनडुब्बियों पर नजर केवल सोनार सिस्टम रख सकता है क्योंकि पनडुब्बियों की पहचान केवल उनकी आवाज से की जा सकती है। सोनार भी दुश्मन की पनडुब्बियों को इंजन की आवाज के आधार पर पहचान करता है। भारत दुनिया के उन पांच देशों में शामिल हो गया है जो खुद टारपीडो बना रहे हैं। टारपीडो यानी समंदर के अंदर पनडुब्बियों को तबाह करने वाली बेहद हाइटेक मिसाइल। पानी के अंदर गन और गोला बारूद काम नहीं करते। टारपीडो की मारक क्षमता और ताकत उसकी बैटरी होती है। लीथियम आयन की बैटरी की ताकत 10 सी होती है। यूं समझ लीजिए कि बड़े से बड़े मोटर वाहनों के लिए केवल 1 सी ताकत की बैटरी पर्याप्त है। टारपीडो की बैटरी की ताकत को कई गुना बढ़ाया जा रहा है।