रवि की क़लम से, कविता। बहाना करके

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आप आइये तो सही कोई बहाना कर के,
चाँद को छत पे बुला लूँगा इशारा कर के
चाहे छा जाये सारे जग में अंधेरा
परवाह नही है,
कल फिर निकल पड़ेगा सूरज लिए लालिमा अपनी
कर देगा उजाला, जग से अंधेरा मिटा कर के
आप आइये तो सही कोई बहाना कर के ।

शर्माते हुए मुझसे बोली
की, क्यूँ आऊँ मैं कोई बहाना कर के
दिल तो बहल जाता है महज़ बातें भी कर के ?
अब कैसे बताऊ उसको
की उसकी याद सता रही है,
देखे बिना नींद नही आ रही है
उसकी आँखों में आँखे मिला के
बात करने का ज़ी चाह रहा है,
सच बताऊ तो दिल को चैन नही मिल रहा है,
आप से दूर हो कर के
आप आइये तो सही कोई बहाना कर के
चाँद को छत पे बुला लूँगा इशारा कर के ।

अगर चले जाते आकाश के नभ तक मेरे हाथ
तो सितारे भी तेरे कदमो में बिछा दते,
तू इतनी खूबसूरत है कि तेरे सामने
सितारे भी आने से कतरा जाते,
इतने से भी जो खुश न होती तुम
तो ले जाते घूमाने किसी लोक में
हवाई जहाज या पानी जहाज से,
कर देते आपके मन को भी प्रशन्न वहाँ घुमा कर के
आप आइये तो सही कोई बहाना कर के।

– रवि कुमार माँझी