अमितजोगीकीसाप्ताहिककॉलम #पार्ट_2
छत्तीसगढ़ की ईस्ट इंडिया कम्पनियाँ: आर्थिक असमानता की समस्या और समाधान।
दावोस_चलो!
आर्जेंटीना के सूरदास कवि #जॉर्जलूईबोर्जेस ने लिखा है कि अगर किसी चीज़ को तह से समझना है तो उसे दूर से देखना और परखना होगा- उस स्थान पर जाकर जिसे वे ‘अल अलेफ’ कहते हैं। छत्तीसगढ़ की वर्तमान दशा और दिशा को समझने के लिए हमें स्विट्ज़रलैंड के शहर #दावोस जाना पड़ेगा। दुनिया भर के नेता, उद्योगपति, समाज सेवी और बुद्धिजीवी वहाँ #वर्ल्डएकनॉमिकफ़ोरम (#WEF) की पचासवीं वर्षगाँठ पर इक्कठे हैं। उनका मनाना है कि दुनिया की अर्थ व्यवस्था पर तीन प्रकार के ख़तरे मंडरा रहे हैं: आर्थिक असमानता की बढ़ती खाई; पर्यावरण परिवर्तन; और भारत के आर्थिक पतन के संकेत। इन तीनों का छत्तीसगढ़ पर ख़ासा प्रभाव देखने को मिलता है। आज की कॉलम में मैं पहले ख़तरे आर्थिक असमानता के छत्तीसगढ़ पर प्रभाव- और समाधान- पर चिंतन करूँगा।
छत्तीसगढ़कीईस्टइंडियाकम्पनियाँ
Oxfam द्वारा जारी एक शोध के अनुसार भारत के 63 सबसे अमीर व्यक्तियों की सम्पत्ति 2018-19 के भारत के ₹24,42,200 करोड़ के वार्षिक बजट से भी अधिक है: मतलब देश के मात्र 1% अमीरों के पास सबसे गरीब 953 करोड़ लोगों से ज़्यादा धन है। छत्तीसगढ़ में स्थिति इस से कहीं ज़्यादा भयावह है। प्रदेश से सबसे अधिक कमाने वाले मात्र 5 सबसे अमीर औद्योगिक घरानों की सम्पत्ति छत्तीसगढ़ के 2019-20 के ₹1,25,102 करोड़ के वार्षिक बजट से 10 गुणा- ₹10,09,297 करोड़- है जबकि देश में सबसे ज़्यादा- 48%- लोग हमारे प्रदेश में ग़रीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहे हैं। इस से भी ज़्यादा चिंताजनक बात तो यह है कि जहां भारत के 63 सबसे अमीर परिवारों के व्यावसायिक मुख्यालय भारत में ही है; वहीं छत्तीसगढ़ में कार्यरत 5 सबसे अमीर कम्पनियों में से एक ने भी प्रदेश में अपना व्यावसायिक मुख्यालय नहीं खोला है जबकि इन सभी औद्योगिक घरानों को उनकी 55-75% सम्पत्ति छत्तीसगढ़ की खनिज सम्पदा के दोहन से ही मिलती है।
मुंबई के उद्योगपति #कुमारमंगलमबिरला की हिरमी (बलौदाबाज़ार) में #अल्ट्राटेकसिमेंट फ़ैक्टरी है। ये देश के सबसे बड़े सिमेंट प्लांटों में से एक है। सिमेंट बनाने के लिए क्लिंकर (बलौदा), कोयला (कोरबा) और पानी (महानदी-शिवनाथ) बिरला छत्तीसगढ़ से लेते है; लेकिन सारे टैक्स मुंबई, जहां उनका कॉर्पोरेट मुख्यालय है, में पटाते है क्योंकि #GST बनाने (उत्पादन) पर नहीं बल्कि बेचने (उपभोग) पर लगता है। छत्तीसगढ़ में केवल माल बनता है लेकिन बिकता मुंबई में है- इसलिए फ़ायदा भी केवल मुंबई को ही मिलता है। छत्तीसगढ़ के खाते में दोहन, प्रदूषण और शोषण ही आते हैं। मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं है कि ये 5 सबसे अमीर कम्पनियाँ आज वही भूमिका अदा कर रही हैं जो 1765 से 1857 के बीच ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी (#BEIC) ने भारत में करी थी- और जिसे इतिहासकार #विल्यमडार्लिंपल ने अपनी पुस्तक ‘#दऐनारकी (अराजकता): ईस्ट इंडिया कम्पनी, #कॉर्पोरेटहिंसा और एक #साम्राज्यकी_लूट’ में बेहद मानवीय और संवेदनशील तरीक़े से वर्णित किया है।
2020-21 में खनिज सम्पदा से #रॉयल्टी, #ज़िलाखनिजनिधि (#DMF) और #CSR मद- जो कि उसके कुल मूल्य का 5% भी नहीं है- को छोड़ शेष कोई भी टैक्स का लाभ छत्तीसगढ़ को नहीं मिलेगा। इस घाटे की भारत के संप्रभु निधि से पूर्ति करने से केंद्र सरकार ने पिछले महीने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। #PRS_लेजिस्लेटिवरिसर्च के एक अध्ययन के अनुसार, छत्तीसगढ़ ने 2018-19 के बजट में ₹4,445 करोड़ के राजस्व अधिशेष का अनुमान लगाया था। ये अधिशेष 2018-19 के संशोधित अनुमानों के अनुसार ₹6,342 करोड़ के राजस्व घाटे में बदल गया। मतलब 2018-19 में सीधे-सीधे छत्तीसगढ़ की जनता को खनिज सम्पदा से मिलने वाले राजस्व में ₹10,787 करोड़ का नुक़सान हुआ था। 2020-21 में ये घाटा और विकराल रूप धारण कर लेगा। इसके लिए आख़िर दोषी कौन है? राज्य में संचालित ईस्ट इंडिया कम्पनियाँ न केवल छत्तीसगढ़ को उसके अधिकार के GST से वंचित कर रहे है बल्कि विगत 3 वर्षों में (#ठेकेप्रथा और #आउट्सॉर्सिंग के माध्यम से ) #रोज़गार, #राजस्व, #विनिवेश और #पूँजीगत_व्यय में 62.83% कटौती कर चुके हैं। ये अक्षम्य है। इस दुगनी मार से छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था का उभर पाना बेहद चुनौतीपूर्ण रहेगा।
चड्डीका नाम_गाड़ी…
सरकार का मानना है कि छत्तीसगढ़ में आर्थिक मंदी का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। मैं उनकी बात से असहमत हूँ। मुख्यमंत्री अपने उद्योगपति-मित्रों के सामने छत्तीसगढ़ में वाहनों के विक्रय के आँकड़े प्रस्तुत करते हैं। इस आर्थिक अजूबे के मात्र दो कारण हैं: पहला, पड़ोसी राज्यों की तरह वाहनों के विक्रय पर छत्तीसगढ़ सरकार ने अतिरिक्त कर लागू नहीं किया और दूसरा, पुरानी पद्धति से निर्मित वाहनों (जिनके विक्रय को सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण के कारण बड़े-बड़े शहरों में रोक दिया है) के विक्रय पर भी कोई ख़ासा रोक नहीं लगाई। लेकिन इसका कदापि ये मतलब नहीं निकाला जा सकता कि छत्तीसगढ़ में सब कुछ बढ़िया चल रहा है।
मुख्यमंत्री के वाहनों के विक्रय के आँकड़े के सामने मैं चड्डियों और बनियानों के विक्रय के आँकड़े रखूँगा। अमरीकी केंद्रीय बैंक के कई दशकों तक प्रमुख रहे #ऐलनग्रीन्स्पैन ने एक बहुत फ़तह की बात कही है। आर्थिक मंदी के संकेत के लिए #GDP, #रोज़गारदर, #इन्फ़्लेशन, #PPP इत्यादि आर्थिक आँकड़ों की जगह वे रोज़ देखते थे कि उपभोगताओं ने चड्डी और बनियान ख़रीदने में कितना खर्च किया क्योंकि कठिन समय में लोग बाक़ी चीजों में कटौती करने से पहले चड्डी-बनियान ख़रीदना बंद कर देते हैं क्योंकि ये रोज़मर्रा की ऐसी वस्तुएँ हैं जो न केवल सस्ती हैं बल्कि दूसरों को दिखाई भी नहीं देतीं। निश्चित रूप से किसी भी अर्थव्यवस्था का बेहतर दर्पण वाहनों से ज़्यादा चड्डी-बनियान की ख़रीदी-बिक्री है। #CMAI (क्लोध्ज़ मैनुफच्तुरेर्स असोसीएशन ओफ़ इंडिया) के सबसे ताजे आँकड़ों के अनुसार जहां पूरे विश्व में पिछले 4 महीने में भारत में सबसे अधिक (50%) चड्डी-बनियान की बिक्री में गिरावट हुई है, वहीं पूरे भारत में छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक (75%) चड्डी-बनियान की बिक्री में गिरावट हुई है।
गाजरऔरछड़ी_नीति
अगर हम ठोस-और कठिन- कदम नहीं लेंगे, तो छत्तीसगढ़ को अपरिवर्तनीय रूप से एक गुलाम राज्य में बदलने से रोका नहीं जा सकता है। कम्पनियों को केवल हिटलरशाही से प्रेरित नहीं किया जाना चाहिए। उनको बेहतर सौदे देकर लुभाया भी जा सकता है। इस सम्बंध में मैं अपने दोनों सामाजिक-आर्थिक प्रेरणास्रोतों- #फ़्रेड्रिकऑगस्टवॉनहायेक (सार: असमानता तभी ख़त्म होगी जब राज्य और समाज, दोनों मार्केट को स्वतंत्र छोड़ दे और अपना संतुलन खुद क़ायम करने दे) और #टॉमसपिकेट्टी (सार: असमानता दूर करने के लिए राज्य अमीरों से 80-90% सम्पत्ति कर वसूले)- के विरोधाभासी विचारों के बीच की खाई की भरपाई करने की कोशिश भी कर रहा हूँ।
इस कॉलम के माध्यम से मैं राज्य सरकार को 4 कदम उठाने का प्रस्ताव दे रहा हूँ:
- खनिज सम्पदा का टैक्स छत्तीसगढ़ को ही मिले, इसके लिए राज्य सरकार आगामी बजट सत्र में 3 बिंदुओं का क़ानून पारित करे कि (A) सभी खनिज पदार्थों को #कच्चा_माल (रा-मटीरीयल) के रूप में प्रदेश से बाहर ले जाने में पूर्णत प्रतिबंध लगाया जाएगा, (B) प्रदेश में कार्यरत सभी खनिज और खनिज-आधारित ईस्ट इंडिया कम्पनियों को अपना पंजीयन छत्तीसगढ़ में ही कराना पड़ेगा और (C) 90% स्थानीय लोगों को सीधे-रोज़गार और 70% स्थानीय इकाइयों को व्यावसायिक ठेके देने पड़ेंगे। इन प्रावधानों का कड़ाई से पालन हो, इसे सरकार और समाज दोनों को मिलकर सुनिश्चित करना पड़ेगा।
- इन तीन शर्तों के बदले में छत्तीसगढ़ को #SGST (जो कि GST का आधा होता है) को 2020-21 से आधा कर देना चाहिए ताकि बाहर की कम्पनियाँ भी छत्तीसगढ़ में अपना पंजीयन कराके यहीं SGST का भुगतान करे। एक साल बाद, जिस अनुपात में राज्य में पंजीकृत कम्पनियों- और उपभोग- में वृद्धि होती है, उसी अनुपात में #SGST को भी और कम करते जाना चाहिए। कर-राजस्व का जो नुक़सान हमें कर की दरों को कम करने से होगा, उसकी दुगनी भरपायी छत्तीसगढ़ में कर के स्रोतों (टैक्स-बेस) को बढ़ाकर की जा सकती है। ऐसा सिंगापुर, दुबई और टेक्सस कर चुके हैं।
- #स्टैग्फ़्लेशन से बचने- उत्पादन को बढ़ाने और महंगाई को क़ाबू करने- के लिए राज्य सरकार को अपने तीनों प्रमुख करों- पेट्रोल और डीज़ल पर कर, बिजली पर कर और आबकारी कर- को भी वर्तमान प्रचलित दरों से सीधे-सीधे आधा कर देना चाहिए। इस से और राज्यों की अपेक्षा छत्तीसगढ़ में बिजली समेत हर वस्तु की क़ीमत आधी हो जाएगी। इस से प्रदेश में उपभोग (बिक्री) में भारी वृद्धि होगी और उत्पादन और उपभोग के बीच संतुलन स्थापित हो सकेगा।
- साथ ही, छत्तीसगढ़ को अन्य उत्पादन-आधारित राज्यों के साथ एक पृथक आर्थिक समूह बनाकर (#प्रडूसरस्टेट्सओफ़_इंडिया) केंद्र को GST घाटे की भरपाई के लिए राजनीतिक रूप से बाध्य करना चाहिए।