क्रोध को विनम्रता से ही जीता जा सकता हैं- लाटा महाराज…………. ज्ञानी वह जो परिस्थिति को समझ व्यवहार करें

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रायपुर। क्रोध पर क्रोध से कभी नियंत्रण नहीं पाया जा सकता है, इससे क्रोध और बढ़ता है, बढ़ते जाता है जिससे अनिष्ठ के सिवा और कुछ होता। क्रोध को विनम्रता से ही जीता जा सकता है। सीता स्वयंवर में भगवान परशुराम का प्रसंग आने पर संतश्री शुभूशरण लाटा महाराज ने ये बातें श्रद्धालुजनों को बताई। कांदुल दुर्गा मंदिर परिसर में चल रही रामकथा के पांचवें दिन उन्होंने बताया कि क्रोध आने पर मनुष्य का बोध चले जाता है और फिर से उचित, अनुचित छोटे-बड़ों का कुछ भी ज्ञान नहीं रहता। क्रोध आने पर सामने वाले को विनम्र हो जाना चाहिए जिससे अनिष्ट नहीं होगा। श्रीराम ने भगवान परशुराम के क्रोध को भी अपनी विनम्रता से शांत कर दिया। लाटा महाराज ने कहा कि ज्ञानी व्यक्ति वही है जो बड़ों के द्वारा कही गई अनुचित बातों को भी स्वीकार कर उसका जवाब न दे। क्योंकि क्रोध शांत होने पर क्रोधी व्यक्ति को स्वयं ही अपनी गलती का अहसास हो जाता है और फिर वह स्वयं ही अपनी गलती पर क्षमा मांग लेता है। लाटा महाराज ने कहा कि गलती तो बड़ों से भी हो सकती है। गलती होने पर तत्काल क्षमा भी मांग लेना चाहिए। क्षमा मांगने से कोई छोटा नहीं हो जाता बल्कि क्षमा मांगने से आत्म शांति मिलती है। जिसका आत्मबल होता है वही क्षमा मांग सकता है, कायर व्यक्ति कभी क्षमा नहीं मांग सकता। क्षमा मांगने से बड़े से बड़े झमेले को टाला जा सकता है। लाटा महाराज ने कहा कि मनुष्य के जीवन में जब भक्ति और शांति आती है तो दूसरे उसका विरोध करने लगते है। क्योंकि वे दूसरों को सुखी और शांत नहीं देख सकते जिसके पास शक्ति है यदि वह उसका उपयोग भक्ति के साथ करें तो उसे किसी तीर्थस्थल पर जाने की आवश्यकता नहीं है। मनुष्य को शक्ति और भक्ति उसके पिछले जन्मों में किए गए पुण्य कार्यों पर ही प्राप्त होती है। शक्ति मिलने पर उसका दुरुपयोग नहीं करना चाहिए बल्कि उसे भक्ति से मिलकर जीवन में कार्य करने चाहिए।