आईपीएस मुकेश गुप्ता और रजनेश सिंह के निलंबन की अवधि छह महीने के लिए बढ़ा दी गई

0
55

रायपुर । फोन टेपिंग मामले में आरोपी बनाए गए आईपीएस मुकेश गुप्ता और रजनेश सिंह के निलंबन की अवधि बढ़ा दी गई हैं। गृह विभाग ने आदेश जारी कर निलंबन की अवधि छह महीने के लिए बढ़ा दी हैं। बता दें कि दोनों आईपीएस अधिकारी पर नान घोटाला मामले में जान बूझकर जांच की दिशा बदलने का आरोप हैं, इस मामले में ईओडब्ल्यू ने मुकेश गुप्ता और रजनेश सिंह के खिलाफ धारा 166, 166 अ,(इ) 167, 193, 194, 196, 201, 218, 466, 467, 471, 120इ तथा भारतीय टेलिग्राफ एक्ट 25, 26 सहपठित धारा 5 (2) के तहत मामला पंजीबद्ध किया हैं। ईओडब्ल्यू में एफआईआर दर्ज होने के बाद राज्य शासन ने अखिल भारतीय सेवा (अनुशासन तथा अपील) नियम 1969 के नियम 3(1) के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए 9 फरवरी 2019 को मुकेश गुप्ता और रजनेश सिंह को निलंबित किया था। बाद में निलंबन की समीक्षा के दौरान अखिल भारतीय सेवा (अनुशासन तथा अपील) नियम 1969 के नियम 3(8) (बी) के तहत 9 अप्रैल 2019 को निलंबन की अवधि 120 दिनों तक के लिए बढ़ा दी गई थी। गृह विभाग ने नियम 3(8) (सी) की अनुसूची शेड्यूल 1(बी) के प्रावधान के तहत गठित समीक्षा समिति ने एक बार मुकेश गुप्ता और रजनेश सिंह के निलंबन की अवधि को बढ़ाने की अनुशंसा की थी, जिसके बाद निलंबन अवधि में 180 दिनों की वृद्धि की गई हैं। बता दें कि बहुचर्चित नान घोटाले मामले में कई प्रभावशाली नेताओं और अधिकारियों के नाम भी सामने आये थे, मामले की जांच का जिम्मा चूंकि मुकेश गुप्ता पर ही था, लिहाजा आरोप है कि उन्होंने जानबूझकर जांच की दिशा बदली। कई बड़े चेहरों को बचाने का काम किया। उस दौरान रजनेश सिंह ईओडब्ल्यू में एसपी के रूप में काम देख रहे थे, ईओडब्ल्यू ने तत्कालीन डीजी मुकेश गुप्ता एवं तत्कालीन एस.पी. रजनेश सिंह के खिलाफ धारा 166, 166 अ,(इ) 167, 193, 194, 196, 201, 218, 466, 467, 471, 120इ तथा भारतीय टेलिग्राफ एक्ट 25, 26 सहपठित धारा 5 (2) के तहत मामला पंजीबद्ध किया गया था। मुकेश गुप्ता और रजनेश सिंह पर यह आरोप है कि नान घोटाले की जांच के दौरान मिले डायरी के कुछ पन्नों के इर्द-गिर्द ही जांच केंद्रीत रखी गई. जबकि डायरी के कई पन्नों में प्रभावशाली लोगों के नाम लिखे गए थे, जिन्हें जांच के दायरे में नहीं लाया गया। विभागीय सूत्रों का कहना है कि जांच को प्रभावित करने के साथ प्रभावशाली लोगों को बचाने के लिए जांच गलत ढंग से की गई।